Betul District of Madhya Pradesh at a Glance

About Betul District :

GENERAL
Betul is one of the marginally located southern districts of Madhya Pradesh, lying almost wholly on the Satpura plateau. It occupies nearly the whole width of the satpura range between the valley of the narmada on the north and the bearer plains on the south. It forms the southernmost part of the Bhopal Division. The District extends between 21-22 and 22-24 degrees North Latitude and between 77-10 and 78-33 degrees East Longitude and forms a compact shape, almost a square with slight projection on the East and the West. Two small enclaves of the district, viz., Batla blocks of the Govt. forests lie to the West between the districts of Nimar (East) and Amaraoti. These enclaves lie on the Northern bank of the Tapti. They extent from West to East between the Meridians 77-59 and 77-02.
BOUNDARIES
The District is bounded on the NORTH by Hoshangabad, on the SOUTH by Amaroti of Maharastra, on the EAST by Chhindwara District and on the WEST by the District of Hoshangabad, East Nimar and Amaroti. The Southern boundary of the district runs almost along the southern foothills of the melghat range, but excludes hattighat and Chikalda hills in Amaroti district. The Western boundary is associated for some distance with the Ganjal river (Southern), a tributary of Tapti, and then with the watershed line between the Morand and the Ganjal (Northern), the tributaries of the Narmada. The Northern boundary is marked by the course of the Morand river, and by the TAWA river beyond Dhodra Mohar Railway station. The Eastern Boundary runs through small streams and hills among which Khurpura and Rotia Nalas are of some significance.
ORIGIN
The district derives its name from the small town of Betul Bazar about 5 km south of Badnur, the Headquarters of the district. During the Maratha regime also, in the beginning of the British rule, Betul or Betul Bazar was the district Headquarters. In 1822 the District Headquarters was shifted to the present place, then only the village came to be known as Badnur Dhana, meaning Badnur village in the local dialect. Now, even after such a long time, not only the district retains the old name, but the name of the new Headquarters town, Badnur, as also been superimposed by “BETUL”.

District at a Glance :

  • District – 
  • Headquarters – 
  • State
Area in Sq Km (Census 2011)
  • Total – 
  • Rural – 
  • Urban – 
Population (Census 2011)
  • Population – 
  • Rural – 
  • Urban – 
  • Male – 
  • Female – 
  • Sex Ratio (Females per 1000 males) – 
  • Density (Total, Persons per sq km) – 
Constituencies (ECI)
  • Assembly
  • Loksabha

Tourist Places :

ताप्ती उदगम स्थल मुलतार्इ :

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मुलतार्इ नगर म.प्र. ही नही बलिक पूरे देश मे पुण्य सलिला मा ताप्ती के उदगम के रूप मे प्रसिद्धता है । पहले इसे मूलतापी के रुप में जाना जाता था । यहां दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते है । यहां सुन्दर मंदिर है । ताप्ती नदी की महिमा की जानकारी स्कंद पुराण में मिलती है । स्कंद पुराण के अंतर्गत ताप्ती महान्त्म्य का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार मा ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है । यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हे ताप्ती से राहत मिलती है । ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शकित प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है । दिवंगत व्यकितयों की असिथयों का विसर्जन भी ताप्ती में करते है । म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है । इस नदी का धार्मिक ही नही आर्थिक सामाजिक महत्व भी है । सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुर्इ है । इस नदी की लंबार्इ 724 किलोमीटर है । यह नदी पूर्व से पशिचम की और बहती है इस नदी के किनारे बरहापुर और सूरत जैसे नगर बसे है  ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाड.ी में गिरती है ।

महान जैन तीर्थ मुक्तागिरि :

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बैतूल जिले के विकासखण्ड भैसदेही की ग्राम पंचायम थपोडा में सिथत है महान जैन तीर्थ मुक्तागिरी। मुक्तागिरी अपनी सुन्दरता, रमणीयता और धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी और आÑश्ट करता है। इस स्थान पर दिगम्बर जैन संप्रदाय के 52 मंदिर है। इन मंदिरों की तथा क्षेत्र का संबंध श्रेणीक विम्बसार से बताया जाता है। यहां मंदिर में भगवान पाश्र्वनाथ की सप्तफणिक प्रतिमा स्थापित है जो शिल्पकार का बेजोड नमूना है। इस क्षेत्र में सिथत एक मानस्तंभ, मनकों शांति और सुख देने वाला है। निर्वाण क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक व्यकित को यहां आकर सुकून मिलता है। यही कारण है कि देश में कोने कोने से जैन धर्मावलंबी ही नहीं दूसरे धर्मो को मानने वाले लोग भी मुक्तागिरी आते है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 102 किलोमीटर है। सतपुड़ा के जंगलों में सिथत होने के कारण अनेक हिसंग पशु भी रहते पर उन्होंने किसी को कोर्इ नुकसान नहीं पहुंचाया यह सिद्ध क्षेत्र का प्रताप है। सिद्ध क्षेत्र मुक्तागिरी से साढे तीन करोड़ मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है। जिसका वर्णन जैन पर्व के निर्वाण काण्ड की गाथा बीस में उल्लेखित है।

सालवर्डी :

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सालवर्डी में भगवान शिव की गुफा है। यहां प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर विशाल मेला लगता है एक सप्ताह तक चलने वाले इस मेले में प्रतिदिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते है। यह स्थल बैतूल जिले के विकासखंड प्रभातपटटन की ग्राम पंचायत सालवर्डी के अंतर्गत सिथत है। सालवर्डी बैतल की तहसील मुलतार्इ और महाराष्ट्र के अमरावती जिले की मोरसी के पास पहाड़ी है, जिस पर एक गुफा में भगवान शिव की मूर्ति प्रतिषिठत है। आमतौर पर यह विश्वास किया जाता है कि इस गुफा के नीचे से पचमढ़ी सिथत महादेव पहाड़ी तक पहुंचने के लिये एक रास्ता जाता है। बैतूल जिले की जनपद पंचायत प्रभातपटटन के अंतर्गत ग्राम सालबर्डी अपनी सुरम्य वादियों एवं भगवान शिव की प्राचीन गुफा एवं उसमें सिथत प्राचीनतम शिवलिंग हेतु विख्यात है। इस शिवलिंग की विशेषता है कि यहां प्रकृति स्वयं भगवान शिव का अभिषेक अनवरत रूप से करती है। शिवलिंग ठीक उपर सिथत पहाड़ी से सतत जलधारा प्रवाहित होती रहती है। यह किवदन्ती है कि पौराणिक काल से सिथत यह शिवलिंग स्वत: प्रस्फुटित हुआ है। यह स्थान मध्यप्रदेष एवं महाराष्ट्र प्रान्त के लाखों श्रृद्धालुओं की श्रृद्धा का केन्द्र है। प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर यहां विशाल मेला लगता है जिसमें उमड़ने वाला जनसैलाब अपने आप में कौतुहल का विषय है। प्रतिवर्ष आयोजित सात दिवदीय मेले में प्रतिदिन लगभग 75 हजार से एक लाख श्रृद्धालु एकत्रित होते है। मेले की प्रमुख विशेषता जो अन्यत्र कहीं देखने नहीं मिलती है वह है लोगो की श्रृद्धा। इसका अनुपम उदाहरण है कि दुर्गम पथ को पार करते हुये भी न केवल पुरूष बलिक महिलाएं व छोटे छोटे बच्चे भी तमाम दिन और रात शिवदर्शन के लिये आते है। शिवगुफा ग्राम से लगभग तीन किमी ऊपर पहाडी पर सिथत है इतने विशल जनसमुदाय का नियंत्रित हो पाना भी अपने आप में किसी चमत्कार से कम नहीं। शिवगुफा पहुंच मार्ग के दोनो ओर निर्सग ने मुक्तहस्त से अपनी सौन्दर्य छटा बिखेरी है। सर्वप्रथम सीतानहानी नामक स्थान है जो कभी अपनी गरम पानी के कुण्ड के लिये विख्यात था, मुप्तगंगा में भी लगातार जलप्रवाह वर्ष पर्यन्त देखा जा सकता है। यात्री जब तीन किमी लम्बी चढ़ार्इ को पार कर शिवगुफा में प्रवेश करता है तो उसे अलौकिक शांति का अनुभव होता है और यात्रा की समस्त थकान कुछ ही पलों के भीतर दूर हो जाती है। शिवगुफा के अंदर भी 3-4 अन्य गुफा है जिनके संबंध में कहा जाता है कि इन गुफाओं से होकर मार्ग सुदुर बड़ा महादेव अर्थात पचमढ़ी पहुंचता है। सालबर्डी के विषय में यह भी कहा जाता है कि जब भगवान शिव का पीछा भस्मासुर नामक राक्षस कर रहा था तब शिव ने कुछ देर के लिये इस गुफा में शरण ली थी। पहाड़ी चटटानों पर सिथत पांंडव की गुफा भी विख्यात है, जहां पर कभी अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपना बसेरा किया था। अन्य विशेषताओं के साथ ग्राम सालबर्डी की एक विशेषता यह भी है कि यह ग्राम आधा मध्यप्रदेष व आधा महाराष्ट्र में विभाजीत करती है। इस प्रकार यह ग्राम दो पृथक संस्कृतियों के अदभुत संगम का भी प्रतीक है। वर्तमान में जनपद पंचायत प्रभातपटटन समस्त व्यवस्थाएं देख रही है तथा इस स्थल को पर्यटन स्थल घाोषित करने हेतु प्रयास किये जा रहे है।

बालाजीपुरम :

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बालाजीपुरम भगवान बालाजी का विशाल मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। यह स्थान बैतूल बाजार नगर पंचायत के अन्तर्गत आता है। जिला मुख्यालय बैतूल से मात्र 7 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग 69 पर सिथत है। दिन प्रतिदिन इसकी प्रसिद्धि फैलती जा रही है। यही कारण है कभी भी किसी भी मौसम में आप इसमें जाएं श्रद्धालुओं का ताता लगा रहा है। मंदिर के साथ ही चित्रकुट भी बना है। जिसमें भगवान राम के जीवन से जुड़े विविध प्रसंगों को प्रदर्शित किया गया है। मूर्तियां ऐसे बनी है जैसे बोल पडे़ंगी। इसके अलावा वैष्णव देवी का मंदिर है। उसमें जाने के लिये आपको गुफा कन्दराओं से होकर गुजरना होगा। कृत्रिम झरना भी बहुत खूबसूरत है। कृत्रिम मन्दाकिनी नदी भी बनार्इ गर्इ है। इसमें नौंका विहार का आनंद भी उठा सकते है। प्रतिवर्ष वसंत पंचमी प्रतिवर्ष बड़ा मेला लगता है। यह पूरे भारत में पांचवे धाम के रूप में अपनी पहचान बना रहा है।

खेड़ला दुर्ग :

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श्राजा जैतपाल बैतूल जिले में 11 वीं शताब्दी में भोपाली क्षेत्र में राज करता था। उसकी राजधानी खेड़लादुर्ग में थी। इस दुर्ग के तक्कालीन अधिपति राजा जैतपाल ने ब्रहम का साक्षात्कार न करा पाने के कारण हजारों साधु सन्यासियों को कठोर दण्ड दिया था। इसकी मांग के अनुसार महापंडितों योगाचार्य मुकुन्दराज स्वामी द्वारा दिव्यशकित से ब्रहम का साक्षात्कार कराया था तथा इस स्थान पर दण्ड भोग रहे साधु सन्यासियों को पीड़ा से मुक्त कराया था उन्होंने हजारों सालों से संस्कृत में धर्मग्रंथ लिखे जाने की परम्परा को तोड़ा। उन्होनें मराठी भाषा मे विवके सिन्धु की महत्ता पूरे महाराष्ट्र प्रान्त में है। यह स्थान पुरातत्व एवं अध्यात्म की दृषिट से अति प्राचीन है।

मलाजपुर :

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मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का मेला प्रतिवर्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर तकरीबन एक माह बसंत पंचमी तक चलता है। बाबा साहब की समाधि की मान्यता है इसकी परिक्रमा करने वाले को प्रेत बाधाओं से छुटकारा मिलता है। यहां से कोर्इ भी निराष होकर नहीं लौटता है। इस वजह से मेला में दूर-दूर से श्रद्धालु आते है। मलाजपुर जिला मुख्यलाय से 42 किलामीटर की दूरी पर विकासखण्ड चिचोली में सिथत है। मलाजपुर में गुरूबाबा साहब का समाधि काल 1700-1800 र्इसवी का माना जाता है। यहां हर साल पौष की पूर्णिता से मेला शुरू होता है। बाबा साहब का समाधि स्थल दूर-दूर तक प्रेत बाधाओं से मुकित दिलाने के लिये चर्चित है। खांसकर पूर्णिमा के दिन यहां पर प्रेत बाधित लोगों की अत्यधिक भीड रहती है। यहां से कोर्इ भी निराश होकर नहीं लौटता है। यह सिलसिला सालों से जारी है। उन्होंने कहां कि यहा पर बाबा साहब तथा उन्हीं के परिजनों की समाधि है। समाधि परिक्रमा करने से पहले बंधारा स्थल पर स्नान करना पड़ता है, यहां मान्यता है कि प्रेत बाधा का शिकार व्यकित जैसे-जैसे परिक्रमा करता है वैसे वैसे वह ठीक होता जाता है। यहां पर रोज ही शाम को आरती होती है। इस आरती की विशेषता यह है कि दरबार के कुत्ते भी आरती में शामिल होकर शंक, करतल ध्वनी में अपनी आवाल मिलाते है। इसकी लेकर महंत कहते है कि यह बाबा का आशीष है। मह भर के मेला में श्रद्धालुओं के रूकने की व्यवस्था जनपद पंचायत चिचोली तथा महंत करते है। समाधि स्थल चिचोली से 8 किमी. दूर है। यहां बस जीप या दुख के दुपाहिया, चौपाहिया वाहनों से पहुंचा जा सकता है। मेला में सभी प्रकार के सामान की दुकाने भी लगती है।

कुकरू :Tapti thumbnail

बैतूल जिला सतपुड़ा की सुरम्यवादियों में बसा है। कुकरू बैतूल जिले की सबसे ऊंची चोटी है। जिला मुख्यालय से लगभग 92 किमी के दूरी पर सिथत है। इस क्षेत्र में कोरकू जनजाति निवास करती है। इस कारण ही इस क्षेत्र को कुकरू के नाम जाना जाता है। म.प्र. में जो स्थान पचमढ़ी का है ठीक वहीं स्थान बैतूल जिले में कुकरू का है। इसकी उंचार्इ समुद्रतल से 1137 मीटर है। यहा से उगते सूर्य को देखना तथा सूर्यास्त होते सूर्य को देखना बड़ा ही मनोरम लगता है। कुकरू काफी के बागवान के लिये भी प्रसिद्ध है। यह प्राकृतिक स्थल चारों तरफ से घनों जंगलों से आच्छादित है।

सतपुड़ा ताप विधुत गृह सारणी

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म0प्र0 की प्रमुख विधुत नगरी सारणी बैतूल जिले की पहचना है। यहां से बनी बिजली पूरे प्रदेश को रोशन करती है। कुल उत्पादन क्षमता 1142.5 मेगावाट है यहां कोयले की सप्लार्र्इ निकट ही पाथाखेडा कोल माइन्स से और जल की आपूर्ति तवा नदी से होती है। तवा नदी पर बना छोटा बांध बेहद खूबसूरत हैं। जिला मुख्यालय बैतूल से सड़क मार्ग से इसकी दूरी 60 किलोमीटर है। यहां पहुचंने के लिये घोडाडोंगरी रेल्वे स्टेशन पर उतना पडता है। यह रेल्वे लाइन पर है। यहां अनेक गाडि़यों का स्टापेज है। रेल्वे स्टेशन घोडाडोंगरी से सारनी की सडक मार्ग से दूरी 27 किलोमीटर है।

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