About Bundi District :
Bundi is a city with 104,457 inhabitants (2011) in the Hadoti region of Rajasthan state in northwest India. It is of particular architectural note for its ornate forts, palaces, and stepwell reservoirs known as baoris. It is the administrative headquarters of Bundi District
The town of Bundi is situated 35 km from Kota and 210 km from Jaipur. It is located at 25.44°N 75.64°E and an average elevation of 268 metres (879 feet). The city lies near a narrow gorge, and is surrounded on three sides by hills of the Aravalli Range. A substantial wall with four gateways encircles the city. It is served by Bundi railway station on Kota-Chittorgarh rail line. The town of Indragarh and nearby places are famous for the renowned temples of Bijasan Mata and Kamleshwar. The Indargarh step well is considered as one of the most attractive places in the Bundi district, especially during the rainy season.
District at a Glance :
- District –
- Headquarters –
- State
- Total –
- Rural –
- Urban –
- Population –
- Rural –
- Urban –
- Male –
- Female –
- Sex Ratio (Females per 1000 males) –
- Density (Total, Persons per sq km) –
- Assembly
- Loksabha –
- Official Website –
Tourist Places :
रानीजी की बावड़ी
बून्दी शहर के मध्य में स्थित रानी जी की बावडी की गणना एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावडियों में की जाती है। इस अनुपम बावडी का निर्माण राव राजा अनिरूद्व सिंह की रानी नाथावती ने करवाया था। कलात्मक बावडी में प्रवेश के लिए तीन द्वार है। बावडी के जल-तल तक पहुचने के लिए सो से अधिक सीढियों को पर करना होता है। कलात्मक रानी जी की बावडी उत्तर मध्य युग की देन है। बावडी के जीर्णोद्वार और चारो ओर उद्यान विकसित होने से इसका महत्व सैलानियों के बढ गया है। हाल ही में रानी जी की बावडी को एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावडियो में शामिल किया गया है। इसमें झरोखों, मेहराबों जल-देवताओं का अंकन किया गया है। वर्तमान में रानी जी की बावडी संरक्षण का जिम्मा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के पास है।
चौरासी खंभों की छतरी
इस छतरी का निर्माण रावराजा अनिरूद्व सिंह (सन 1681-1695) ने अपने धाय भाई देवा गुर्जर की याद में सन 1683 में कराया था। कोटा रोड पर राजकीय महाविद्यालय के सामने रणजीत निवास परिसर में स्थित दो मंजिला छतरी के 84 खम्भे है तथा चबूतरे के चारों ओर विभिन्न पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं आदि के चित्र पत्थर पर उकेरे गये है। स्थापत्य व पाषाण कला का यह अदभूत नमूना हैं। इसके आंगन में एक सुन्दर बगीचा भी स्थित है।
नवल सागर झील
तारागढ से नीचे दायें जाने वाले मार्ग पर नवल सागर झील स्थित है। कटोरे के आकार की इस झील के पानी में सूर्यास्त के समय राजमहल की परछाई मन को छू लेती हैं। झील में पानी की आवक के लिए चारो तरफ पहाडों से नालों के निर्माण रियासत काल से ही किया गया है। झील के मध्य में वरूण मन्दिर, महादेव मन्दिर स्थित है जो झील की शोभा बढाते है। झील के एक छोर पर तन्त्र विधा पर आधारित गजलक्ष्मी की भव्य मूर्ति स्थित है, मान्यता के अनुसार यह मूर्ति सम्पूर्ण भारत वर्ष में यही पर स्थित है।
चित्रशाला
तारागढ के आंचल में स्थित चित्रशैली, विशिष्ठ रंगयोजना, सुन्दर-समुखी नारियों के चित्रण, पष्ठ भूमि में सघन वन-सम्पदा के आदि के लिए प्रसिद्ध रही है। सन 1660 व 1680 के आस-पास के कई सुन्दर चित्र यहां पर बने हुए है। चित्रशाला के बाहर उद्यान व कुण्ड बना हुआ है। कुण्ड के चारों ओर बैठने के चौखाने, बने हुए है।
सुखमहल व जेतसागर झील
सुखमहल व जेतसागर झील बून्दी के उतरी द्वार के बाहर स्थित है- सुखमहल व जैतसागर झील। लगभग 4 किमी लम्बी इस झील में नौका विहार का आनन्द लिया जा सकता है। इसके एक छोर पर सुखमहल होने से इसकी खूबसूरती बढ जाती है। सुखमहल का निर्माण राव राजा विष्णु सिंह ने 1773 ई में कराया था। बून्दी शहर की ओर चलने पर दांयी ओर टेरेस गार्डन बांयी ओर पहाडी पर मीरा साहब की मजार स्थित है। समय-समय पर झील में विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है।
तारागढ दुर्ग
बून्दी शहर के उत्तर में 1426 फीट उची पहाडी पर तारागढ दुर्ग बना हुआ है। इस दुर्ग को रावराजा बेरसिंह ने सन 1354 ई में बनवाया था। दुर्ग में चार कुण्ड है जो कि पानी की समस्या को हल करने के लिए बनवाये गये थे। दुर्ग के मध्य में भीम बुर्ज स्थित है। विदेशी पत्रकार रिडियार्ड किपलिंग के शब्दों में ‘यह मानव निर्मित नही बल्कि फरिश्तो द्वारा लगता है’ इसमें हजारी दरवाजा, हाथी पोल, नौ ढाण, रतन दौलत, दरीखाना, रतन निवास, छत्रमहल, बादल महल, मोती महल, आदि देखने के स्थान है।
केशवरायपाटन
धार्मिक आस्था और मन्दिरो की नगरी व बून्दी जिले का दर्शनीय नगर है केशवरायपाटन । बून्दी से 45 किलोमीटर दूर स्थित यह नगर चम्बल नदी के तट स्थित है1 यहां नवम्बर माह मे कार्तिक पूर्णिमा का भव्य मेला लगता हे। जिसमे धर्मावलम्बियो की संख्या एक लाख को पार कर जाती है।हजारो नर-नारी इस पर पवित्र चम्बल नदी मे स्नान करते है।यहां मक्केशाह बाबा की दरगाह भी धर्मावलम्बियो के लिए आस्था का केन्द्र हैं ।यहां हर वर्ष बून्दी उत्सव के पावन अवसर पर चम्बल नदी के तट पर सांस्कुतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।इस मेले का महत्व पुष्कर मेले से कम नही है।
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